Monday 2 February 2015

dil ki15(likhaney ko log kuch bhi likh jaatey)

लिखने को लोग कुछ भी लिख जाते ,
कुछ के पढ़े जाते ,कुछ बंद पन्नो मे दबे रह जाते है।
भावनावो  का पूरा जहाँ ,धुँधली तस्वीर रह जाती है ,
सोचते रहने को पूरी उम्मीद निखार आती है ,
फर्क क्या पड़ेगा ,सोच कितनी बदलेगी ,
आखिरी लम्हों मे ,पूरी कायनात उलझेगी ,
जीते जी चंद लोग जी पाते है ,
आपको समझने को ,पन्ने भी उलझ जाते है।
शुक्र है खुदा का ,जिसने तीसरा जहाँ बनाया ,
निकल कर अपनी जिंदगी से ,
कितनो ने अपना मुकाम बनाया ,
लिखने को लोग कुछ भी लिख जाते ,कुछ दिल को समझ आते है ,कुछ मन मे बैठ जाते है।
सोचता हू ए जहाँ कितना बदनसीब होता ,
समझने को दिल ,सोचने को दिमाग ना होता ,
सजाते है सोचने वाले ,मन की अटखेलियाँ करते है ,
तरंगो की रेखा पकड़ ,शाम सुबह जलते है ,
नमन है उन सबका ,जो दूसरो की फ़िक्र करते है ,
जीवन का रंग बदरंग कर ,रंगीन ए जहाँ करते है।
लिखने को लोग कुछ भी लिख जाते ,
कुछ के पढ़े जाते ,कुछ बंद पन्नो मे दबे रह जाते है।
 

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