मुक़क्मल जहाँ के तलाश मे
मन व्चलित हो उठा ,
दिन कटे ,रात कटी
महीनो ,सालों बीत गए
अब कटती नहीं हैं रात औ र दिन
अब तेरा सहारा भी झूठा लगने लगा।
मै तड़फता रहू ,
तुम अपने को कोसती रहो
ए सिलसिला कब तक चलता रहेगा ?
अंत होगा क्या ,
तेरे मेरे जज़बात का
अब नज़रे भी ,
ख्याबो की तरह हो गए
तू क्यू नहीं दुनिआदारी मे रम जाती
छोड़ के ख्याबो को
सब कुछ भूल जाती
मेरा क्या है ,मैं जी लूँगा
तेरे याद मे ए दम छोड़ दूँगा।
मन व्चलित हो उठा ,
दिन कटे ,रात कटी
महीनो ,सालों बीत गए
अब कटती नहीं हैं रात औ र दिन
अब तेरा सहारा भी झूठा लगने लगा।
मै तड़फता रहू ,
तुम अपने को कोसती रहो
ए सिलसिला कब तक चलता रहेगा ?
अंत होगा क्या ,
तेरे मेरे जज़बात का
अब नज़रे भी ,
ख्याबो की तरह हो गए
तू क्यू नहीं दुनिआदारी मे रम जाती
छोड़ के ख्याबो को
सब कुछ भूल जाती
मेरा क्या है ,मैं जी लूँगा
तेरे याद मे ए दम छोड़ दूँगा।
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