Monday 26 January 2015

dilki6

हर बार एक नई कोशिस करना चाहता हू ,ना जाने असफलता सामने क्यु आ जाती है। रोज हरपल खयाले आती है ,आ कर दरवाजे पर आ कर खड़ी  हो जाती है ,क्या किया तूने जिंदगी मे ?सोच के दिल भारी सा हो जाता है। कभी-कभी दिल की तरंगे उफ़ान मारती है ,सोचता हू कुछ कर सकता हू। फिर सोचता हु क्या करू ,जीवन को जंजाल समझु या कर्त्तव्य ,रोज कुछ न कुछ नया होता हैं। मैं उनमे कहाँ जगह बनाऊ ,नौकरी करू  या जीवन घर के लिये समर्पित कर दू। क्या मिलेगा जब नाम ही कुछ पीढ़ीओ के बाद घर के ही सदस्य भूल जाते है। जीवन को प्रेम के लिये बना दू  तो सायद कुछ सालो तक याद रह सकता हू.


                   आजकल हर जगह अस्तित्व की लड़ाई चल रही है ,कोई नाम और शोहरत के पीछे लगा है ,कोई अपने जीवन को रोटी की तलाश मे भटक रहा है ,ऒर गर्व से कहता है हम २१ शाताब्दी मे जी रहे है। नई नई क्रांतियाँ हो रही है ए हम सब जानते है ,लेकिन आदमी सेल्फिश होता जा रहा है ,आदमी अकेला पड़ता जा रहा है ,अपने अस्तित्व को तलासने के लिया सोसल  नेटवर्किंग  साइट पर ध्यान देता जा रहा है ,कही कोई अपना मिल जाये घंटो लगा रह रहा है। दोस किसका है?सायद  हम सबका है। 

No comments: